सुमित्रानंदन पंत का जन्म सन 1900 ईस्वी में अल्मोड़ा जिले के कसौली गांव में हुआ था उनके बचपन का नाम गोसाई दत्त था। पंत जी ने आजीवन विवाह नहीं किया। सन 1920 में महात्मा गांधी द्वारा चलाए असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर कॉलेज छोड़ दिया। पंत जी को बचपन से कविता लिखने का शौक था पैदा होने के चंद घंटे के बाद माताजी की मृत्यु हो जाने के कारण आप प्रकृति की गोद में पले यही कारण है कि आपकी आरंभिक कविताओं में वीणा और पल्लव प्रकृति चित्रण अत्यंत संजीव है।सन 1938 में पंत जी ने रूपाभ नामक पत्रिका निकाली जिसकी प्रगतिशील साहित्य चेतना के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका हैं। पंत जी पहले छायावादी कवि रहे। फिर प्रकृति वादी हुए और अंत में अध्यात्मवादी हो गए। प्राकृतिक सौंदर्य के साथ ही आप मानव सौंदर्य के कुशल चितेरे हैं कल्पनाशीलता के साथ-साथ रहस्य अनुभूति और मानवतावादी दृष्टिकोण पंत जी(Sumitranand pant ka jivan Parichay ) के काव्य की मुख्य विशेषताएं हैं।
सम्मान-
जीवन में पंत जी अनेक पुरस्कारों से भी सम्मानित हुए। जिनमें उनसे 1961 ई में भारत सरकार द्वारा पदम भूषण का सम्मान भी है इसके अतिरिक्त आपको सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, साहित्यिक अकादमी पुरस्कार, भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार आदि से सम्मानित किया गया।28 दिसंबर 1978 में पंत जी स्वर्ग सिधार गए।
रचनाएं –
काव्य कृतियां – वीणा,ग्रंथि, पल्लव, गुंजन, युगांत, युगवाणी, ग्राम्या, स्वर्ण किरण, उत्तरा, कला और बूढ़ा चांद , चिंदबरा आदि
भाषा शैली –
सुमित्रानंदन पंत जी ने आधुनिक हिंदी कविता को अभिव्यंजना की नई पद्धति और काव्य भाषा को नवीन दृष्टि से समृद्ध किया। पंत जी की कविता में भाषा और संवेदना के सूक्ष्म और अतरंग संबंधों की पहचान है जिससे हिंदी काव्य भाषा के नए सौंदर्य बोध का विकास हुआ। पंत जी ने हिंदी खड़ी बोली की काव्य भाषा की व्यंजना शक्ति का विकास किया।
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